Thursday 30 September 2010

ये जाता हुआ सितम्बर और आती हुई सर्दियाँ

सितम्बर माह के ये आखिरि दिन और ये सुहाना मौसम मन को हौले हौले गुदगुदा रहा है . ऐसा लगता है मानो हर कोई खुश है और चारों तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ हैं . ये चारों तरफ फैली हरीयाली दिल को कितना सुकून दे जाती है . अब ये मत सोचियेगा की हम इस सुकून को भी बयां कर पाएँगे क्योंकि ये तो सिर्फ महसूस करने की चीज़ है .

वैसे इस बार वर्षा रानी भी दिल्ली पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान रही हैं . सितम्बर के अंत में तो इन्होंने इतना पानी बरसाया की अब कम से कम अगले एक साल तक दिल्ली और आस पास के इलाकों में तो पानी की कमी नहीं होगी और दिल्ली वालों के लिए ये एक ख़ुशी की बात है . हाँ , ये मैं मानता हूँ की कुछ दिन तक यहाँ सभी को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा जैसे सड़कों पर लम्बा ट्रेफिक जाम, गन्दा पानी  नालियों के अन्दर बहने के बजाय बहार बहना, यमुना नदी का पुरे शबाब के साथ बहना और दिल्ली की पूर्वी सीमाओं को धो डालना .  पर फिर भी कम से कम ये सभी समस्याएँ सी डब्लू जी २०१० के आयोजनों से उपजी समस्याओं से तो छोटी  ही  हैं .

समस्याओं की छोडिये हम तो मौसम की बात कर रहे थे . तो जी दिल्ली का मौसम बड़ा ही  सुहाना है कोइ कुछ भी कहे ; आज कल, ना धूप ज्यादा है और न ही गर्मी, अगर आप  कहीं छाया में खड़े हैं तो आप  को  गर्मी का एहसास तो कम से कम नहीं होगा भले ही धूप में होता हो .

वैसे अभी हाल में हुई बारिश ने भी मौसम को चकाचक रंग दिया है . ऐसा लगता है मानो भगवान् ने प्रकृति रुपी कैनवास को वर्षा रुपी पानी के रंगों से रंग कर प्रदर्शनी लगा दी है और मैं उस ऊपरवाले की इस अद्भुत प्रदर्शनी को देख रहा हूँ .  जब भी घर  से बहार निकलता हूँ तो प्रकृति के नज़ारे देख के मन प्रसन्न हो जाता है और ऐसा लगता है मानो ये समां बस यूँ ही बना रहे .

हाँ ये हो सकता है की आप मेरी इन बातों से सहमत ना हों क्योंकि आप दिल्ली की उस आबादी का हिस्सा हो सकते हैं जो सुबह से शाम तक काम कर कर के इतना थक जाते हैं की उनका ध्यान ही इस तरफ  नहीं जा पता है . आफिस और परिवार की चक्की के दोनों पाटों में पिसने वाला घुन थोड़ी ही जानता है की बहार का मौसम कैसा है और ना ही वो इसका आनंद ले सकता है. क्या समझे ????

हा हा हा .....

अरे भाई नाराज़ क्यों होते हैं आपको थोड़े ही  कह रहा हूँ  और अगर आपको लग रहा है की आपको ही कह रहा हूँ तो आप समझ सकते हैं की आप किस प्रकार की ज़िन्दगी जी रहे हैं ................

क्या कहा बदतमीज़ हूँ मैं ....................

आप ऐसा कह सकते हैं . आपको पूरा अधिकार है. पर मैं तो सिर्फ आइना दिखाने की कोशिश कर रहा हूँ जिस से की ऊपर वाले के घर जा के आपको शर्मिंदा ना होना पड़े .........................

अरे जनाब थोडा घर से बहार निकलिए और देखी मौसम कितना खुश मिजाज़ है . मौसम की सुन्दरता का मज़ा लीजिए और उस उपरवाले की तारीफ के पुल बांधिए (भले हे मन में सही) .

4 comments:

Patali-The-Village said...

बहुत अच्छा मौसम और चरों तरफ हरियाली ही हरियाली है|

ZEAL said...

suhana lekh !...badhai !

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

संगीता पुरी said...

इस सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!