Saturday 23 October 2010

दिल्ली की बरसात और पूरे चाँद की रात

आज दिल्ल्ली का मौसम बड़ा सुहाना है शाम को अच्छी बारिश हुई है और उसके बाद से हलकी ठण्ड बढ़ गई है . बारिश के बाद का मौसम कितना सुहाना लगता है . मन आसमान में दूर तक ऊंची उड़ान भरने लगता है वो उड़ान जो शायद राजहंस ही भर सकता है .  ऐसी उड़ान मात्र की सोच से ही मन रोमांचित हो उठता है तो सोचिये जब मन में वास्तव में ऐसे भाव पनप रहे हों तो भावनाओं का क्या होगा .

इन्ही सुखद भावों के साथ आज बैठा हु अपना ब्लॉग लिखने . वैसे ब्लॉग भी बहुत अच्छी चीज़ है . ऐसा नहीं है की मैं हमेशा ब्लॉग लिखता हूँ . लिखने का शौक तो बचपन से ही है पर सिर्फ डायरी  में . पता नहीं क्यों मन की बातों को खुद तक सिमित रखने की आदत सी हो गई है . शायद इसलिए क्यों की बचपन से हे मन के भावों को भारतीय समाज के नियमानुसार दबा के रखा है पर अब जब ऐसा मौका मिला है कि दुनिया हमारे विचार जान और पढ़ सकती है ( ज़रूरी नहीं की आपके लेख पढने वाले आपके जानकार हों ) तो सोचा क्यों न अपनी खुशियाँ और गम या युं कहें की अपना दिल दुनिया के सामने रखा जाए .

दूर तक जाऊँगा तो लगेगा गुरूजी पाठ पढ़ा रहे हैं.  इसलिए मुद्दे की बात करते हैं . तो मैं कह रहा था की आज का मौसम बड़ा सुहाना है आसमान में चाँद पूरा अपने शबाब पर है . ऐसा लगता है मानो एक नव विवाहिता बिना गूंघट सैर पर निकली हो . इतना खूबसूरत की नज़र ही नहीं हटती 

और जैसा की हम सभी जानते हैं की अक्टूबर का महीना अपनी आखिरी साँसे ले रहा है तो ठण्ड भी उसी हिसाब से है . भीनी भीनी मीठी सी . मनन को गुदगुदाती सी और मन में एक सुखद सा अहसास भरती सी और इस समां को और सुखद बनाती ये ठंडी ठंडी बयार .

ये सभी मिलकर मौसम को इतना सुहाना कर दे रहे हैं की मन मतवाला हो उठा है . इतना मतवाला की शराब की कई बोतलें भी इसकी बराबरी नहीं कर सकती . वैसे अपने सभी पीने वाले दोस्तों से माफ़ी मांगना चाहूँगा अपने इस तुलनात्मक उदहारण के लिए  क्षमा प्रार्थी हूँ क्योंकि नहीं पीने के कारण मुझे इसकी ताकत का अंदाजा नहीं है. पर दिल के भाव ही ऐसे हैं की क्या करें .

आज तो स्वर्ग के देवता भी दिल्ली का मौसम देख के हमारी किस्मत से रश्क कर रहे होंगे.

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