Saturday 27 February 2010

दुनिया बदलने की क्षमता है हम में अगर हम चाहें तो

पता नहीं क्यों ऐसा अब महसूस नहीं होता की भारत की तस्वीर बदलेगी . राजनितिक स्तर पर जो कुछ भी हो रहा है पता नहीं वह कितना सही और कितना गलत है . कभी कभी मैं सोचता हूँ की शायद मेरे अन्दर वो समझ ही नहीं है की मैं राजनीतिक मसले समझ सकूं . फिर लगता है की नहीं क्या ऐसे लोग भी हैं दुनिया में जो मुझसे भी जयादा समझदार हैं . फिर लगता है की हो भी सकते हैं, तभी दुनिया के तमाम देशों में से एक मेरे देश में ही इतनी विभिन्नता देखने को मिल जाती है. विभिन्नता - प्राकृतिक नहीं भाई आर्थिक - उम्मीद करता हूँ की आप समझ ही गए होंगे . अंग्रेजी की एक कहावत याद आ रही है अगर इजाज़त हो तो सुनाऊँ :

IF DOG EATS DOG WHY NOT I ???

शाब्दिक अर्थ तो कहता है की अगर कुत्ता कुत्ते को खाता है तो मैं क्यों नहीं पर वैचारिक अर्थ बड़े ही साफ़ तौर पर कहता है की अगर तुम्हें आगे बढ़ना है तो अपने किसी साथी के कंधे पर पैर रख के बढ़ना पड़ेगा. लोग इन पंक्तियों को पढ़ तो लेते हैं परन्तु अर्थ गलत लगा लेते हैं .

अच्छा चलिए एक बात बता दीजिये हम सभी जानते हैं की हम अपने तिरंगे को सलामी देते हैं और ये ही बात हम अपने देश में आने वाले विदेशियों को भी बताते हैं . पर क्या वो हमारे तिरंगे को उतने आदर श्रद्धा और सम्मान से सलामी देते हैं जितना कोई भारतवासी . नहीं ना .

तो भीर हम उनके देश की कहावतों को खों अपने देश में जगह दे रहे हैं ???

हमारे देश में कई धर्मों को मान ने वाले लोग रहते हैं और वो सभी लगभग एक दुसरे के नियमों से परिचित होते हैं पर क्या वो एक दूसरे के नियमों का पालन करने का प्रयास करते हैं ????????
नहीं ना . तो फिर हम दुसरे देश की कहावतों को क्यों अपना कर अपने देश का बंटाधार कर रहे हैं .................

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